सूर्य संक्रांति, जिसे सूर्य का राशि परिवर्तन भी कहा जाता है, हिंदू धर्म और वैदिक ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण खगोलीय और धार्मिक घटना है। यह वह समय होता है जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। प्रत्येक माह में होने वाली यह संक्रांति सूर्य की ऊर्जा, जीवन शक्ति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
सूर्य संक्रांति 2025 एक ऐसा अवसर है जो धार्मिक, ज्योतिषीय और पर्यावरणीय महत्व को एक साथ जोड़ता है। इस दिन सूर्य पूजा, दान-पुण्य और ज्योतिषीय उपाय करने से जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि आती है। मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति जैसे प्रमुख पड़ावों पर विशेष ध्यान दें, क्योंकि ये दीर्घकालिक प्रभाव डालते हैं।
सूर्य संक्रांति क्या है?
सूर्य संक्रांति उस खगोलीय घटना को कहा जाता है जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करता है। यह प्रक्रिया हर महीने होती है और इसे वैदिक ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण समय माना जाता है। सूर्य को आत्मा, स्वास्थ्य, नेतृत्व और ऊर्जा का कारक माना जाता है। प्रत्येक संक्रांति का अपना विशेष महत्व होता है, जैसे मकर संक्रांति, मेष संक्रांति, और कर्क संक्रांति।
2025 में, सूर्य संक्रांति की तारीखें निम्नलिखित हैं:
- मकर संक्रांति: 14 जनवरी 2025
- कुंभ संक्रांति: 12 फरवरी 2025
- मीन संक्रांति: 14 मार्च 2025
- मेष संक्रांति: 13 अप्रैल 2025
- वृषभ संक्रांति: 14 मई 2025
- मिथुन संक्रांति: 14 जून 2025
- कर्क संक्रांति: 16 जुलाई 2025
- सिंह संक्रांति: 16 अगस्त 2025
- कन्या संक्रांति: 16 सितंबर 2025
- तुला संक्रांति: 17 अक्टूबर 2025
- वृश्चिक संक्रांति: 16 नवंबर 2025
- धनु संक्रांति: 15 दिसंबर 2025
हर संक्रांति का धार्मिक, ज्योतिषीय और खगोलीय दृष्टि से विशेष महत्व होता है। विशेषकर मकर संक्रांति, कर्क संक्रांति, तुला संक्रांति आदि को भारत में व्यापक रूप से पूजा, व्रत और दान-पुण्य के रूप में मनाया जाता है।
सूर्य संक्रांति का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
सूर्य संक्रांति का हिंदू धर्म में गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। सूर्य को जीवन का आधार माना जाता है, और इसकी पूजा से स्वास्थ्य, समृद्धि और यश की प्राप्ति होती है।
- मकर संक्रांति: यह उत्तरायण का प्रारंभ है, जिसे देवताओं का समय माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान, तिल-गुड़ का दान और पतंगबाजी की परंपरा प्रचलित है।
- कर्क संक्रांति: यह दक्षिणायन का प्रारंभ है, जिसे पितृ कार्यों के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस दिन सूर्य पूजा और जल अर्पण विशेष फलदायी होता है।
- ज्योतिषीय महत्व: सूर्य का राशि परिवर्तन कुंडली के विभिन्न भावों को प्रभावित करता है, जिससे करियर, स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन पर असर पड़ता है।
सूर्य संक्रांति की पूजा विधि
सूर्य संक्रांति के दिन पूजा करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। नीचे दी गई पूजा विधि को आप घर पर आसानी से कर सकते हैं:
- स्नान और शुद्धिकरण: प्रातःकाल सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल की तैयारी: घर के पूजा स्थल को साफ करें और एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं।
- सूर्य यंत्र या प्रतिमा: सूर्य देव की मूर्ति या यंत्र स्थापित करें। यदि उपलब्ध न हो, तो सूर्य की तस्वीर रखें।
- पूजा सामग्री: जल, दूध, कुमकुम, चंदन, लाल फूल, गुड़, तिल, गेहूं और अक्षत तैयार करें।
- सूर्य मंत्र जाप: निम्नलिखित मंत्र का 108 बार जाप करें:
ॐ घृणिः सूर्याय नमः
- जल अर्पण: तांबे के लोटे में जल लेकर सूर्य की ओर मुख करके “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र के साथ जल अर्पित करें।
- दान-पुण्य: संक्रांति के दिन तिल, गुड़, गेहूं और लाल वस्त्र का दान करें।
- आरती: सूर्य देव की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
सूर्य संक्रांति के आध्यात्मिक लाभ क्या है?
- सूर्य संक्रांति के दिन सूर्य की ऊर्जा शुद्धतम होती है
- यह दिन ध्यान, जप, साधना के लिए श्रेष्ठ माना गया है
- मन, बुद्धि और आत्मा की शुद्धि और जागरण का समय
उज्जैन में सूर्य पूजा
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